Last updated on August 27th, 2024 at 12:09 pm
सर्वप्रथम मैं बौद्धाचार्य, अरविंद राजाराम जाधव (बापेरकर) अपने इस बुद्ध नीति चैनल में आप सभी का स्वागत करता हूं।
आज बौद्ध समाज में कुछ लोगों का मानना है की, बुद्ध को ‘भगवान’ नहीं मानना चाहिए और कुछ लोग मानते हैं की, बुद्ध ही ‘भगवान’ है। यथायोग्य अभ्यास न होने के कारण और व्हॉट्सएप यूनिवर्सिटी में सीखने के कारण, बहुत सारे लोग अज्ञानता और संदेह के जाल में उलझ के रह जाते हैं। इसलिए आज के हमारे ब्लॉग का विषय है की, क्या भगवान बुद्ध को भगवान कहा जाना चाहिए या नहीं? अगर नहीं, तो भगवान किसे कहें? तथागत क्या है? बुद्ध क्या हैं? साथ ही परमेश्वर, देव और भगवान इन अवधारणाओं मे भी स्पष्टता होनी चाहिए। तभी सभी को सत्य का पता चलेगा। आज के इस ब्लॉग में इन सभी का स्पष्टीकरण होनेवाला है। तो चलिये लेख को शुरू करते है।
1) Who is called Bhagvan? What Does The Term Bhagvan Mean?
भगवान किसे कहते हैं? ‘भगवान’ का मतलब क्या होता हैं?
सबसे पहला प्रश्न यह है कि, भगवान किसे कहा जाता है? भगवान का मतलब क्या होता है? अगर यह पता चल जाए, तो यह भी पता चल जाएगा कि, भगवान बुद्ध को भगवान कहना चाहिए या नहीं।
कुछ लोगों को लगता है, ईश्वर या परमेश्वर, देव, और भगवान यह एक ही शब्द है। लेकिन अभ्यास करने पर पता चलता है कि, ईश्वर-परमेश्वर, देवता और भगवान इसमें जमीन और आसमान का भेद है ।
इस भेद को पहचानने के लिए हम भगवान इस शब्द को दो हिस्सों में बांट देते हैं।
भग् + वान
भग् :
इस शब्द में भग् का अर्थ होता है भग्न होना, नष्ट होना, विनाश होना, समाप्त होना, किसी चीज का त्याग करना। इसलिए भगवा रंग त्याग का माना जाता है, जो तथागत के चिवर (वस्त्र) का रंग है।
वान :
और इस शब्द में वान का अर्थ होता है तृष्णा, कामना, इच्छा, मोह, माया, वासना, लालसा।
भगवान :
इसका मतलब है, भगवान इस शब्द का अर्थ होता है; जिन्होंने स्थितप्रज्ञ रहकर अपनी तृष्णा (काम तृष्णा, भव तृष्णा और विभव तृष्णा), कामना, इच्छा, मोह, माया, वासना, लालसा इन सारी चीजों को भग्न किया, नष्ट किया, विनाश किया, त्याग किया और उनपर विजय प्राप्त की।
तो आपकी नजर में ऐसी कौन सी व्यक्ति है, जिन्होंने अपने सारे सुख के मार्ग छोड़कर, त्यागकर दुनिया में मंगलमैत्री प्रस्थापित करने के लिए अपनी सारी वासनाओं को नष्ट करके, तृष्णाओं पर विजय प्राप्त की। वह ऐसी कौन सी व्यक्ति है जिन्होंने अपने सारी लालसाओं का त्याग किया। राजसत्ता की लालसा, संपत्ति की लालसा, स्त्री की लालसा, खुद को महान बताने की लालसा, स्वार्थ की लालसा, इन सभी का विनाश किसने किया? कौन स्थितप्रज्ञ है? मतलब जिनके लिए सुख और दुःख एक समान है, जिनके लिए दिन और रात एक समान है, जिनके लिए हर ऋतु, गर्मी, ठंड, बारिश एक समान है। हर रंग, हर दिन, हर महीना, हर साल एक समान है। परिस्थिति कैसी भी हो, उनके अनुकूल हो जाती है।
आप सभी को बताना चाहूंगा, कि यह सवाल अगर पूरी दुनिया में पूछा जाए, तो हर एक के जबान पर एक ही नाम होगा, और वह है तथागत भगवान बुद्ध। कोई भी इंसान अपने पिता को उनके नाम से बुलाकर उनका अपमान नहीं कर सकता, इसलिए हम सिद्धार्थ या गौतम बुद्ध कहकर उन्हें नाम से नहीं पुकारते, बल्कि ‘तथागत भगवान बुद्ध‘ कहकर उन्हें सम्मान देते हैं, जिस सम्मान के वे हकदार है।
2) Who is called Ishwar – Parameshwar, Dev- Devata?
ईश्वर या परमेश्वर किसे कहते हैं? देव शब्द का मतलब क्या होता हैं?
दूसरा प्रश्न यह है कि, ईश्वर/ परमेश्वर, देव इनका बौद्ध धम्म में स्थान होता है, की नहीं होता? अगर होता है, तो क्या स्थान होता हैं?
ईश्वर या परमेश्वर क्या है?
ईश्वर या परमेश्वर को सृष्टी का सृजनकर्ता एवं निर्माता माना जाता है। हमारे जीवन में कोई भी संकट या समस्या आती है, और हम ईश्वर/परमेश्वर की स्तुती,आराधना या प्रार्थना करते है, तो हर समस्या या संकट से मुक्त होते है; ऐसा माना जाता है। ईश्वर या परमेश्वर पे विश्वास, यह प्रमाण माना जाता है।
लेकिन बौद्ध धम्म में यह नहीं माना जाता है की, सारी सृष्टी (Nature) का कोई ईश्वर या परमेश्वर निर्माता है, और वह इस सृष्टी को चलाता है या प्रार्थना करने पर हमें संकट या समस्या से मुक्त करता है। बौद्ध धम्म में इस सृष्टी (Nature) को ही सर्वश्रेष्ठ माना गया है, जो हमारे जीवन को चलाती है। परमेश्वर पे विश्वास रखने को प्रमाण नहीं माना गया है। अपने आंतरिक शक़्ती को बढ़ाने के लिए अपने अंतर्मन पे विश्वास ज़रूरी है। बौद्ध धम्म मानता है कि आप अभी जो भी है, वह अपने विचारों की वजह से है। इसीलिए मनुष्य के विचार ही उसका भविष्य तय करते है। तो अच्छे, शुद्ध और कुशल विचार आपको सफलता की ओर ले जाते है। ग़लत या बुरे विचार आपको संकट, समस्या, हानी या असफलता की ओर ले जाते है। इसीलिए ‘मन’ सर्वश्रेष्ठ है। बौद्ध धम्म में ‘कर्म’ पर विश्वास रखने को कहा गया है। दूसरा कोई भी आपकी परिस्थिति को ज़िम्मेदार नहीं है। आप स्वयं ही ज़िम्मेदार हो। इसीलिए आपको बचाने के लिए या सफल करने के लिए दूसरा कोई नहीं आएगा। आपको ही अच्छे कर्म करने पड़ेंगे।
यह बहुत ही गहन अध्ययन का विषय है। भगवान बुद्ध ने इसके बारे में महत्वपूर्ण विचार दिए है। ईश्वर यह संज्ञा जो कोसल राज्य में, अचिरवती नदी के किनारे भगवान बुद्ध के साथ भारद्वाज और वासेठ्ठ इन दो ब्राह्मणों के बीच में हुई वार्तालाप से स्पष्ट हो जाती हैं। इसके लिए एक स्वतंत्र बड़ा लेख जल्द ही बनाऊँगा।
क्या बौद्ध धम्म में ‘देव’ इस संज्ञा का स्थान है? बौद्ध समाज आस्तिक है, या नास्तिक?
सारे लोगों को ऐसा लगता है, की बौद्ध लोग नास्तिक होते है और ‘देव’ इस संज्ञा को नहीं मानते। लेकिन ऐसा नहीं है। बौद्ध व्यक्ति आस्तिक होती है और देव इस संज्ञा को बिल्कुल मानती है। लेकिन बौद्ध समाज में ‘देव’ इस संज्ञा की संकल्पना अलग है।
बौद्ध समाज किसी काल्पनिक देवता को नही मानता बल्की जिस संकल्पना को संत तुकाराम महाराज ने अपने अभंग में कथन किया है, उस परिभाषा से देव इस संज्ञा को मानता है। संत संत तुकाराम महाराज ने अपने अभंग में कहा है की,
बौद्ध समाज किसी काल्पनिक देवता को नही मानता बल्की जिस संकल्पना को संत तुकाराम महाराज ने अपने अभंग में कथन किया है, उस परिभाषा से देव इस संज्ञा को मानता है। संत संत तुकाराम महाराज ने अपने अभंग में कहा है की,
जे का रंजले गांजले, त्यासी म्हणे जो आपुले ।
तोची साधू ओळखावा, देव तेथेची जाणावा।।
इससे यह पता चलता है की, बौद्ध समाज आस्तिक है और देव उसको मानता है, जो निस्वार्थी मनुष्य अपने स्वार्थ को छोडकर दुसरों की मदद करता है, दुसरों के सुख के लिए अपना सुख त्याग देता है, पीडित लोगों को अपना समझता है, ऐसे निस्वार्थी महान मनुष्य को देव या देवता और मराठी में देव माणूस कहा जाता है।
तो दोस्तों यह लेख यही पर समाप्त होता है। मिलते है अगले लेख में। जिसका नाम है, “What is the Importance of ritual objects in Buddhism? | बौद्ध धम्म में विधी संस्कार साहित्य का महत्व क्या है?” जिस में मैने ‘तथागत’ और ‘बुद्ध’ इन दो संज्ञाओ का स्पष्टीकरण किया है। नमो बुद्धाय ।।